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मोहन सिंह मानुष

Tragedy

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मोहन सिंह मानुष

Tragedy

फर्क तो जरूर मिलता है।

फर्क तो जरूर मिलता है।

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तू शक्तिशाली!मैं दलित !

तू स्वर्ण ! मैं नीच!

यह शब्द स्वार्थ में

तूने ही मुझे दिए।

तू मालिक मैं दास

तेरी विचारधारा में;

मेरा उपहास

शोषण का खाता


यहां हर रोज खुलता है

अरे!कितना भी अनदेखा करो

फर्क तो जरूर मिलता है।


जरा-सा खून का कतरा निकाल

मेरा और अपना

फिर देख!

मिला

मेरे वजूद के साथ अपना वजूद

फर्क मिलेगा !


मगर नस्ल का नहीं

ना ही रूप का

हां! तेरी सोच के बीज का

उच्च-नीच के बीच का

भेदभाव चीखता

तेरे अहम् में गुरुर लाजमी-सा

मिलता है !

फर्क तो जरूर मिलता है।


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