फर्क तो जरूर मिलता है।
फर्क तो जरूर मिलता है।
तू शक्तिशाली!मैं दलित !
तू स्वर्ण ! मैं नीच!
यह शब्द स्वार्थ में
तूने ही मुझे दिए।
तू मालिक मैं दास
तेरी विचारधारा में;
मेरा उपहास
शोषण का खाता
यहां हर रोज खुलता है
अरे!कितना भी अनदेखा करो
फर्क तो जरूर मिलता है।
जरा-सा खून का कतरा निकाल
मेरा और अपना
फिर देख!
मिला
मेरे वजूद के साथ अपना वजूद
फर्क मिलेगा !
मगर नस्ल का नहीं
ना ही रूप का
हां! तेरी सोच के बीज का
उच्च-नीच के बीच का
भेदभाव चीखता
तेरे अहम् में गुरुर लाजमी-सा
मिलता है !
फर्क तो जरूर मिलता है।
