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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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सैनिक को नमन

सैनिक को नमन

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न दिन देखे, न वो देखे रात,

कुछ तो अलग है उसकी बात

है वो हम जैसा ही

पर कुछ तो अलग हैं उसके ज़ज़्बात।


कभी फ़िक्र उसको खुद की नही होती

जब भी होती है फ़िक्र उसको

तो हर फ़िक्र पर उसकी

मोहर उसके देश की होती।


हिम की शीतलता भी

कब उसको डिगा पायी ?

मौत ने सबको हराया 

पर मौत ने भी 

उसके ज़ज़्बे से शिकस्त पायी।


जो उठी कोई नज़र सरहद पे कभी

पहले वो नज़र, इससे टकरायी।

मर मिटा वो, लेकिन आँच कभी

सरहद पे न आयी।

नमन है मेरा हर सैनिक को 

जो जागता है रातों को

और बाँट देता है हम जैसों में

मीठी नींद की सौगातों को।


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