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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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कविता

कविता

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यूँ ही नहीं बन जाती है कविता

शब्दों की आवाजाही होती है 

जब शाँत हृदय में।


फिर बह चलती है

शब्दों की अविरल सरिता।

शब्दों की सरिता से ही

चुन चुन कर कुछ शब्दों से

बन जाती है एक कविता।


शब्दों में सिमटे रहते हैं

भाव अनगिनत एकाकी मन के।

मन के बिखरे मनकों को

जब पिरो लेते हैं एक ही धागे में

तब बन जाती है एक कविता।


सिर्फ जिस दिल से निकलती है

उस दिल तक ही नहीं सीमित है

ये तो छेड़ती हर दिल के तारों को

जब तार कई बज जाते हैं

तब लेती है जन्म एक कविता।


भाव कई, कई ज़ज़्बात कई

सब खुद में समेटे फिरती है

शब्दों का जामा ओढ़े रहती

कहती है खुद को वो एक कविता।


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