खुद से प्रेम
खुद से प्रेम
आज बहुत दिनों बाद मैं प्रेम में हूँ,
खुद के प्रेम में।
छोटी छोटी बातों का अफसोस करना
बंद कर दिया है।
नियति से भी कोई शिकायत नहीं बची है।
क्योंकि मैंने समझ लिया है
शिकायतें दूरियाँ बढ़ती हैं।
और खुद से बढ़ती हुई दूरियाँ
जिंदगी से दूर ले जाती है।
आज बहुत दिनों के बाद में प्रेम में हूँ,
खुद के प्रेम में।
अब हर तकलीफदेह बातों को नजरअंदाज करने लगी हूँ,
थोड़े से अपने हिसाब से जीने लगी हूँ।
बात बेबात मुस्कुराने लगी हूँ।
आँसू इससे पहले की कोरों पर आये,
उसे कोई लतीफ़ा सुनाने लगी हूँ।
क्योंकि जानती हूँ ये आँसू जब दिल से निकलेंगे
सैलाब बनकर आयेंगे
कितने पलों को बहा ले जायेंगे।
अब मैं खुद के वजूद को समझने लगी हूँ,
और बहुत दिनों बाद खुद से प्रेम करने लगी हूँ।
