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Mamta Singh Devaa

Abstract

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Mamta Singh Devaa

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" मेरी वसीयत मेरे दोस्तों के नाम "

" मेरी वसीयत मेरे दोस्तों के नाम "

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ऐ दोस्त....

मेरे जाने पर तुम वही करना 

जो मैने दिल से लिखा है 

थोड़ी देर के लिए ये मत सोचना

की मैने ये क्यूँ लिखा है ,

अगर कभी भी नफरत थी तो

मेरे लिए मत बहाना तुम आँसू

अगर कभी भी प्यार था तो

मेरे लिए जी भर कर गिराना तुम आँसू ,

अगर की होगी कभी लड़ाई तो

मेरे लिए मुझसे ही थोड़ा और लड़ लेना

अगर किया होगा कभी प्यार तो

मेरे लिए मुझसे ही थोड़ा प्यार और कर लेना ,

अगर कभी की होगी मुझसे जलन तो

मेरी चिता पर एक लकड़ी खुद रख देना 

अगर दिया होगा मैने कभी सूकून तो

मेरी चिता पर एक अंजूरी पानी गिरा देना ,

अगर खाया होगा कभी मेरे हाथ का खाना तो

मेरी पसंद का खाना बना खुद खा लेना 

अगर नही लिखी होगी दो लाईन कभी तो भी

मेरे लिए दो लाईन ज़रूर लिख लेना ,

अगर नही छूई होगी कभी मिट्टी भी तो

मेरे लिए एक छोटा सा खिलौना तो गढ़ ही देना 

याद से मेरी तस्वीर पर कभी भी हार मत चढ़ाना

जो कहना सामने कहना पीछे मुँह मत चिढ़ाना ,

अगर मेरे प्रति मन में जो भी रह गया हो

मेरे जाने के बाद वो सब पूरी कर लेना 

मेरी अधूरी एक एक ख्वाहिशों को

तुम सब थोड़ा थोड़ा मिल कर पूरी कर देना ,

मेरी मुक्ति का यही माध्यम है हूज़ूर

इसको अंजाम तक पहुँचाना तुम ज़ुरूर

दिमाग नही मुझसे दिल तुम मिला लेना

हर हाल में मुझे मुक्ति तुम दिला देना ।



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