फिर से मुस्कुराता
फिर से मुस्कुराता
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
सभी दुखों को भूल कर फिर से मुस्कुराता
इच्छाओं की खातिर बहुत दौड़ लगाई थी
काश उन पलों को अपनों के साथ बिताता
ख्वाहिशों का वो सागर इतना गहरा हो गया
सारी उम्र उम्मीदों की उस कश्ती में खो गया
बाहर के बनावटी शोर में अब इतना डूब गया
तेज हो गई रफ़्तार वक्त की तब स्मरण हुआ
मैं कितना बदल गया , मैं कितना बदल गया
काश दिल में छुपी उन यादों को जगा पाता
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
सभी दुखों को भूल कर फिर से मुस्कुराता !
स्वार्थ इतना बढ़ा कि सपनों को बेचा आया
हाँ भूल हुई मुझसे जो विष का वृक्ष लगाया
चेष्टा थी ऊपर उठकर आसमानों को छूने की
आंख खुली तो मैं सपनों का नगर बेच आया
आज जीवन में घनघोर अंधेरा छाया हुआ है
काश फिर वही जिंदगी मैं अपनों संग जीता
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
सभी दुखों को भूलकर फिर से मुस्कुराता !
