नज़रबद
नज़रबद
बगिया की सैर में
चूक का नज़रबद
ताने देता है
भंवरों से लेकर पराग
और फूलों की खुश्बू से
होते हुए रंग तक
लडी़ झाड़ बना देता है
ऐ नज़रबदे
बगिया की सैर में तुमने
देखे जो फूल,रंग और गंध
भंवरे के नथूने से मुँह तक
चखे जो पराग
तुम वहीं तक पहुँचे
कल भी और आज भी
अब बताओ नया क्या है?
हमने टहनियों से निचे झांका
जड़ के पास फैले
गोबर के साथ खेलते
गोबरौलों की संगत में
आवारा नन्हें नन्हें कीडे़ देखे हैं
उनकी गुलाटी को देखा है
उनकी मस्ती को निहारा है
वहीं आसपास देखा मैंने
छिद्र के बगल में
गोलाकार सजे
मिट्टी चूर के लड्डू को
मैंने माली से पूछा था
जानकारी ली थी
और बताया था उसने
ये केचुओं का घर है
अंदर कान लगाये सुना मैंने
ढोल ताशे बज रहे थे
जश्न में डूबे थे केचुए
केचुओं को
महसूस किया था हमने
तुम अभी भी
फूलों तक ही सिमट आए हो
हम बात कर रहें जहाँ की
तुम्हारे पाँव उसी छिद्र पर हैं
पाँव हटा लो नज़रबदे
केचुओं की बस्ती में
घुटन महसूस हो रहा होगा
हमारी कविता
केचुओं की बस्ती
और तुम्हारे
बेवकूफ पाँव के खिलाफ़
लिखी जाने वाली एक जंग है।