रद्दी करे न बद्दी
रद्दी करे न बद्दी
बीते दिनों की बात है
जब टीन के छतों पर
लौकी का था आसरा
एक बेटी ही थी पराई सी
ऐसा लगता था
पीहर पीहर न होकर
एक रैन बसेरा हो
जैसे मोहलत मिली हो
सीखने और इंतज़ार की
अनदेखे और अनबोले
रिश्तों के
कैसे उठाने हैं नाज़
और कैसे संभालने हैं नख़रे
अनजाने देश का सफ़र
पिया घर जाने की तैयारी
करते रहना ही एक काम
रोटी हो गोल
सब्जी हो तीख़ी
भिंडी बने करारी
कढ़ी में छोंक नपातुला सा
जल न जाये ध्यान रखना था
वरना फूटी किस्मत का बोझ
तानों की पालकी पर लदा रहता
पढ़ना-लिखना बस खानापूर्ति बराबर
फिर भी लग ही गई
ये लत बुरी वाली
सर पे चढ़ने लगा पढ़ने का नशा
कुछ भी मिले
कहीं भी दिखे पढ़ना है
शब्द-शब्द गुनना है बुनना है
पढ़ने की दिवानगी
रद्दी नहीं होती है बद्दी
ये बात थी सुनी
उन्हीं टुकड़ो को जोड़ कर
पढ़ने की जुगत करी
देखी दुनिया सारी
जाना संसार वहीं से
डिग्री एक भी नहीं मिली कभी
इसका गिला भी नहीं
कोई शिकायत भी नहीं
पढ़ने की चाह अब भी
वैसी ही आज तक
हर पल है सीखने की लालसा
कुछ नया समझा जाये
कुछ नई बात जानी जाये
ठान लिया जाये अगर बहना ही
तो फिर आँखों से क्यों?
शब्द-शब्द
,धार-धार।