धरती के भगवान
धरती के भगवान
एक गरीब किसान की व्यथा.......
क्या लिखूं व्यथा, उस इंसान की
जो माटीपूत्र कहा जाता ।
घूँट-घूँट मरता है , वह जीवन मे,
सुख चेन कही न वह पाता ।
होते ही बोनी , लगता है वह ,
मेहनत के बीज उगाने में ।
करता है मेहनत , तन-मन से ,
वह अपनी फसल बचाने में ।
मगर मानसून भी कभी तो ,
उसका साथ नही देती है ।
वर्षा अधिक होने से , उसकी मेहनत ,
तहस-नहस हो जाती है ।
इसके चलते वह जीवन मे ,
ब्याज तले दबने लगता ।
उसके द्वारा उत्पादित फसलों का ,
कोई ऒर दाम लगाता है ।
चिंताओं के बोझ तले दबा वह ,
फिर भी राज़ी होता है ।
जो देता है सबको अन्न , वह अन्त में ,
अन्नरहित रह जाता है ।
बेटी की शादी और अच्छे वक़्त के सपने ,
ज्यो के त्यों रह जाते है ।
ओर ऊपर से ब्याज का टेंशन ,
उसे अंदर ही अंदर खाता है ।
यह दो से तीन का ब्याज उसे ,
मृत्यू तक लेकर जाता है ।
माटीपूत्र कहलाने वाला, समस्याओ से लड़ते-लड़ते ,
माटी में मिल जाता है, माटी में मिल जाता है ।
जय जवान , जय किसान
