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Jeevan singh Parihar

Abstract

5.0  

Jeevan singh Parihar

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धरती के भगवान

धरती के भगवान

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एक गरीब किसान की व्यथा.......

क्या लिखूं व्यथा, उस इंसान की

जो माटीपूत्र कहा जाता ।


घूँट-घूँट मरता है , वह जीवन मे,

सुख चेन कही न वह पाता ।


होते ही बोनी , लगता है वह ,

मेहनत के बीज उगाने में ।


करता है मेहनत , तन-मन से ,

वह अपनी फसल बचाने में ।


मगर मानसून भी कभी तो ,

उसका साथ नही देती है ।


वर्षा अधिक होने से , उसकी मेहनत ,

तहस-नहस हो जाती है ।


इसके चलते वह जीवन मे ,

ब्याज तले दबने लगता ।


उसके द्वारा उत्पादित फसलों का ,

कोई ऒर दाम लगाता है ।


चिंताओं के बोझ तले दबा वह ,

फिर भी राज़ी होता है ।


जो देता है सबको अन्न , वह अन्त में ,

अन्नरहित रह जाता है ।


बेटी की शादी और अच्छे वक़्त के सपने ,

ज्यो के त्यों रह जाते है ।


ओर ऊपर से ब्याज का टेंशन ,

उसे अंदर ही अंदर खाता है ।


यह दो से तीन का ब्याज उसे ,

मृत्यू तक लेकर जाता है ।


माटीपूत्र कहलाने वाला, समस्याओ से लड़ते-लड़ते ,

माटी में मिल जाता है, माटी में मिल जाता है ।


जय जवान , जय किसान





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