कलम
कलम
चली - चली मेरी कलम चली
लिखेगी इतिहास नया
सृष्टि के कण -कण मे
भरेगी विश्वास नया ।।
हर कली,हर फूल मे
जागेगा विश्वास नया
सृष्टि के कण -कण से
ऐसा उत्साह निकालुँगा ।।
सोये कब्रिस्तान के मुर्दों
मे भी जोश भर डालूँगा
जो कुछ बचा लोहे का चचा
भी लड़ने आयेगा ।।
अपनी जर्जर काया का बना व्रज
अंंधियारे को मार भगायेगा