पौरूष परिहार
Drama
है हवा के झोकै
फिर भी मूँछों पर
ताव दिये जा रहे हैं।
खुद किश्तों पर जी रहे,
दूसरों को सुझाव
दिये जा रहे हैं।
भुला दो
मोदी
ख्वाहिश
मिलन
कलम
कर्म
सरस्वती वन्दन...
खामोश कलम
अजब
त्याग
ऊंचे पहाड़ों के ठंडे दर्द अपनी पुकार से बांध लेते है ऊंचे पहाड़ों के ठंडे दर्द अपनी पुकार से बांध लेते है
कभी जरा सी हवा चली तो बिखर जाता है सपनों का महल l कभी जरा सी हवा चली तो बिखर जाता है सपनों का महल l
दिल के आँगन ये स्वर्ण सी किरणें बिखर जाती जब हर कोने में दिल के आँगन ये स्वर्ण सी किरणें बिखर जाती जब हर कोने में
होंठों की जगह आंखों से निकल, न जाने कहां धुआं-धुआं हो जाती है। होंठों की जगह आंखों से निकल, न जाने कहां धुआं-धुआं हो जाती है।
किस शांति की तलाश में घाट घाट भटकता है हूं ये कैसा योगी मैं और किस योग में हूं मगन किस शांति की तलाश में घाट घाट भटकता है हूं ये कैसा योगी मैं और किस योग में हू...
शायद मजाक उड़ाते होंगे मेरी न कही बातों का शायद मजाक उड़ाते होंगे मेरी न कही बातों का
कोख की कोठरी से उसकी चीख बेहोश माँ भी न सुन सकी कोख की कोठरी से उसकी चीख बेहोश माँ भी न सुन सकी
दीपक भी बन गया तम स्तोत्र है हर ओर आज निशाचरों का जोर है दीपक भी बन गया तम स्तोत्र है हर ओर आज निशाचरों का जोर है
कभी मेरे चरित्र पर तो कभी उनके किरदार पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया कभी मेरे चरित्र पर तो कभी उनके किरदार पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया
आकर ख़्वाबों में यूँ रोज-रोज तूम.. और इस दिल को बेक़रार न कर आकर ख़्वाबों में यूँ रोज-रोज तूम.. और इस दिल को बेक़रार न कर
एहसासों की हत्या कर, सब कुछ पराया करना, एहसासों की हत्या कर, सब कुछ पराया करना,
फिर रस्म कन्यादान की निभा मुझे किसी और आंगन का कर दिया, फिर रस्म कन्यादान की निभा मुझे किसी और आंगन का कर दिया,
जैसे आधार नंबर मात्र एक डेटा है.... एक शरीर का...एक वोट का.... जैसे आधार नंबर मात्र एक डेटा है.... एक शरीर का...एक वोट का....
जहाँ झुकी पलकों के सायों तले और बेमन सी मुस्कान पर लोग रीझ जाते जहाँ झुकी पलकों के सायों तले और बेमन सी मुस्कान पर लोग रीझ जाते
हाँ कोमल हूं मैं फूल सी और एक पंख सी नाजुक हूँ पर नाम आए परिवार का तो सबसे लड़ जाती है हाँ कोमल हूं मैं फूल सी और एक पंख सी नाजुक हूँ पर नाम आए परिवार का तो सबसे लड़...
जब राम थे तब भी ऊंगली उठाई गई जनक दुलारी पर.. और अब जबकि....! जब राम थे तब भी ऊंगली उठाई गई जनक दुलारी पर.. और अब जबकि....!
शायद मैं उसके योग्य नहीं उसे यह दीपक नहीं, दूसरा सूर्य मिले ! शायद मैं उसके योग्य नहीं उसे यह दीपक नहीं, दूसरा सूर्य मिले !
लोग स्वार्थ के लिये निभाते रिश्ते चार है। लहू-रिश्ते में भी क्या ख़ूब पानी की बहार है। लोग स्वार्थ के लिये निभाते रिश्ते चार है। लहू-रिश्ते में भी क्या ख़ूब पानी की ...
बादलों की तरह कल फिर आओगे शायद इस गलतफहमी में थे बादलों की तरह कल फिर आओगे शायद इस गलतफहमी में थे
आओ संकल्प करें, खुलकर हंसे हम हंसी न हो हमारी, झूठ, अधर्म, पाप की आओ संकल्प करें, खुलकर हंसे हम हंसी न हो हमारी, झूठ, अधर्म, पाप की