पौरूष परिहार
Drama
तन हल कर, मन बैल बना
लहलहायेंगे तेरे भी सपने।
धर धैर्य, दे बीज विश्वास का
होंंगे अंकुर (कर्म फल) घने।
भुला दो
मोदी
ख्वाहिश
मिलन
कलम
कर्म
सरस्वती वन्दन...
खामोश कलम
अजब
त्याग
तुम कीर्तिमान बना कर सब को आश्चर्यचकित करना। तुम कीर्तिमान बना कर सब को आश्चर्यचकित करना।
दुनिया भर का बोझ उठाए, ये नन्हे नन्हे हाथ मेरे...! दुनिया भर का बोझ उठाए, ये नन्हे नन्हे हाथ मेरे...!
एक जीत पाने के लिए, कई हार साथ होती है ! एक जीत पाने के लिए, कई हार साथ होती है !
कभी मुझसे मिलना चाहे तो, कहना पलकों को ढक कर उससे, दिलों में शायद ज़िंदा हो, यही बस... कभी जो बात... कभी मुझसे मिलना चाहे तो, कहना पलकों को ढक कर उससे, दिलों में शायद ज़िंदा हो, य...
सुना है कभी दौर हुआ करता था पत्थरों का अब तो पत्थर के हो गए हैं लोग। सुना है कभी दौर हुआ करता था पत्थरों का अब तो पत्थर के हो गए हैं लोग।
मेरी ज़िम्मेदारियाँ मुझे मरने नहीं देंगी...! मेरी ज़िम्मेदारियाँ मुझे मरने नहीं देंगी...!
मजबूरी में करते काम, अशिक्षा का है परिणाम ! मजबूरी में करते काम, अशिक्षा का है परिणाम !
एक ओर हरा-भरा गाँव बजती हैं जानवरों के गले की घंटियाँ चरवाहों की हँसी के साथ दूसरी ओर रिसता है पीपल ... एक ओर हरा-भरा गाँव बजती हैं जानवरों के गले की घंटियाँ चरवाहों की हँसी के साथ दूस...
बेसबब गुज़रता रहता है शहरों की तंग गलियों से कभी तो कविता और ग़ज़लों की गली से होकर गुज़र बेसबब गुज़रता रहता है शहरों की तंग गलियों से कभी तो कविता और ग़ज़लों की गली से ह...
जीवन को जीते रहने का ये, हुनर कहाँ से लाती हो तुम ? जीवन को जीते रहने का ये, हुनर कहाँ से लाती हो तुम ?
किताब के पन्नों की तरह पलट जाए ज़िन्दगी तो क्या बात है ! किताब के पन्नों की तरह पलट जाए ज़िन्दगी तो क्या बात है !
मैं, माँ की चटाई बिछाकर माँ का चश्मा लगाती हूँ और माँ की किताबों में खोजती हूँ माँँ...! मैं, माँ की चटाई बिछाकर माँ का चश्मा लगाती हूँ और माँ की किताबों में खोजती हू...
तन्हा-तन्हा रातें अपनी मीठी-मीठी बातें उनकी क्या जाने हम सोच के अपनी आँखों में आँसू भर लाए ! तन्हा-तन्हा रातें अपनी मीठी-मीठी बातें उनकी क्या जाने हम सोच के अपनी आँखों मे...
कठिनाइयों के सामने यूँ मजबूर ना हो तू खुद ही एक कोहीनूर है ! कठिनाइयों के सामने यूँ मजबूर ना हो तू खुद ही एक कोहीनूर है !
तुझे नहीं पता पर, ये ज़िन्दगी टिकी ही है तुझ पर...! तुझे नहीं पता पर, ये ज़िन्दगी टिकी ही है तुझ पर...!
बिलखती है ख़ामोशी चीख़ता है सन्नाटा पालनकर्ता माँग रहा है दो रोटी का आटा...! बिलखती है ख़ामोशी चीख़ता है सन्नाटा पालनकर्ता माँग रहा है दो रोटी का आटा...!
दे दे इतनी - सी रोशनी कि दिल का अंधेरा दूर कर सकूं मैं कोई टूटी हुई उम्मीद अभी भी जैसे कायम है दे दे इतनी - सी रोशनी कि दिल का अंधेरा दूर कर सकूं मैं कोई टूटी हुई उम्मीद अ...
कि जब बचपन मिले इसमें इस बार मायूसी ना हो...! कि जब बचपन मिले इसमें इस बार मायूसी ना हो...!
लहरों के बीच अपनी कश्ती में किनारे से दूर बैठा हूँ...। लहरों के बीच अपनी कश्ती में किनारे से दूर बैठा हूँ...।
बिना परिश्रम किए, कभी भी हार मान मत। बिना परिश्रम किए, कभी भी हार मान मत।