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पौरूष परिहार

Drama

3.5  

पौरूष परिहार

Drama

कर्म

कर्म

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तन हल कर, मन बैल बना

लहलहायेंगे तेरे भी सपने।


धर धैर्य, दे बीज विश्वास का

होंंगे अंकुर (कर्म फल) घने।


साहित्याला गुण द्या
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