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पौरूष परिहार

Drama

3.8  

पौरूष परिहार

Drama

खामोश कलम

खामोश कलम

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अगर मैं चुप हूँ तो

कमजोर न समझना

पड़ने पर वक्त मैं

तलवार बन सकती हूँ


इरादे चट्टान से मजबूत है मेरे

पड़ने पर वक्त मैं

कमजोरों का हथियार

बन सकती हूँ।


गवाह तो मेरा खुद,

खुदा है

हकीकत उसे भी

मेरी पता है।


जब-जब मैंने चुप्पी

अपनी तोड़ी है

कमजोरों की गाँठ

मैं बनी हूँ।


शोषणकारियों की

गदृन मैंने तोड़ी है।।


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