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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

समस्याओं के घनघोर बादल

समस्याओं के घनघोर बादल

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इस जीवन में छाए हुए हैं, घनघोर बादल

मिल नही रहा है, समस्याओं का कोई हल

चहुँओर दिख रही, सिर्फ़ अंधेरे की शक्ल

हो रहा, हर ओर से भोर किरणों का कत्ल


फिर भी हृदय से आ रहा, एक मंगल स्वर

समस्या दलदल मे ही खिलते, इंसानी कमल

क्यों रोता है, क्यों व्यर्थ ही आंसू तू खोता है

कोई चीज नहीं स्थायी, सब चीजें यहां चंचल


क्या लाया, क्या खो गया, जो हो रहा, विकल

सुख न रहा, दुःख का भी बीत जायेगा पल

अंधेरों से लड़, जला कर्म दीपक, तू हृदयतल

फिर अमावस में होगी, पूनम चांदनी कोमल


खुद को समस्या कसौटी पर कस, तू हर पल

फिर देख, कैसे नही बनता तू ज़माने में कुंतल

इस जीवन मे चाहे, छाये हुए हो कितने, बादल

खुद को बना सूर्य, समस्या बादल होंगे, विफल


कठिनाइयों के शूल पर मजबूती से रख, पग

तेरा दृढ़ निश्चय शूलों को फूलों में देगा, बदल।


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