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कुमार अविनाश केसर

Abstract

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कुमार अविनाश केसर

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छईंटा में संसार

छईंटा में संसार

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सूर्य,

अर्घ्य,

हाथ,

छँइटा,

खोंइछा,

खूँट,

खूँट में गाँठ!

गाँठ में घूँट भर जिजीविषा!!

खुद की -

अपनों की -

एक गाँठ।

जादू की पोटली।

गाँठ में ग़रीबी है,

गाँठ में अमीरी है,

जीवन है, मृत्यु है।

मन की कामना है,

समस्याओं का सामना है।

दिल की उमंगें हैं।

जादुई सपने हैं,

पराये हैं, अपने हैं।

सुबह-शाम,दिन-रात,

सप्ताह - महीने- साल हैं।

हड्डी, मांस, छाल हैं।

जीवन की कमाई है,

दुनिया समाई है।

एक खूँट मन!

सुपली भर जीवन!!

छँइटा भर परिजन!!!

हे सुरुज गोसाईं,

सब -

तेरे ही आसरे है!



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