तुझे जिया
तुझे जिया


बूँद से -
समुंद तक
तुम-
इतना फैले...
कि सिमट नहीं पाए...
किसी भी अंक में।
इतना विस्तार....
कि
अणु से ब्रह्मांड तक-
सिलसिले में है यात्रा...
अनंत तक!!
पर....
मुझे याद है -
तुम-
इतने..
इतने....
छोटे हो गए थे-
मेरे बचपन में..
कि
मैं
तुझे
अपने नन्हें हाथों से
खूब छुआ...!
खूब पीया...!
और तो और.....
तेरी आँखों में झाँक कर -
खूब जीया.....!!!