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Sangeeta Ashok Kothari

Abstract

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Sangeeta Ashok Kothari

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गर्मी की छुट्टी

गर्मी की छुट्टी

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"गर्मी की छुट्टी और वो फुर्सत के पल "

दौड़ते वक़्त और भागदौड़ के साथ मेरी ज़िन्दगी यूँ चलती रही,

शादी,ससुराल व बच्चों के साथ अपनी ज़िन्दगी भूलती गयी,

क्या सर्दी,क्या गर्मी, क्या वर्षा हर हाल में ज़िन्दगी कटती गयी,

बस एक गर्मी की छुट्टियाँ ही मुख पर मुस्कान ला देती,


पीहर जाने की तलब,लालसा तन-मन में खुशियाँ भर देती,

पहला कारण कि वहीं पर तो माँ आराम करने के लिए कहती,

दूसरा औरों को "संगू के बच्चे "कहकर सबसे पहचान कराती,

बच्चों का तो पूछो मत बस सिर में छायी ननिहाल की ख़ुमारी,


अपनी मर्ज़ी के मालिक ननिहाल में,ना चिंता पढ़ाई की, 

मेरे होशियार बच्चे जानते हैं कि वहाँ माँ उन्हें टोक नहीं सकती,

नाना-नानी,मामा-मामी और मासी करेंगे उनकी तिमारदारी,

घूमना-फिरना, खाना-पीना और मस्ती बस यही दिनचर्या होगी,


जायज हो या खर्चीली हर मनोकामना शिद्दत से पूरी होगी,

मेरे लाल पीले वैसे जानते हैं नाना नानी की अचूक कमजोरी,

कि असल से सूद प्यारा लगता हैं एक शाश्वत सत्य ये भी,

छुटियाँ रखने के लिए मैं पाठशालाओं को भी धन्यवाद करती,


पीहर जाने की मेरी तैयारी तो युद्धस्तर पर शुरू हो जाती,

मुम्बई की टॉफ़ीया, हलवा, कपड़े खरीदने की फेहरिस्त लम्बी होती,

मेरे और बच्चों के चेहरे की चमक हमारी खुशियाँ बयान करती,

हाँ, थोड़ा पति से दूर रहने की कसक मन में जरूर उठती,

पर फिर सोचती रोज तो यहीं रहना कभी कभी तो मायके जाती।।


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