STORYMIRROR

Sangeeta Ashok Kothari

Abstract

4  

Sangeeta Ashok Kothari

Abstract

फुर्सत

फुर्सत

1 min
12


कहीं तो जा रहे हो पर तुम्हें फ़ुरसत नहीं है बताने की.... 

एक हम है जो दरवाजे पर आँखें लगाए बैठें है।।


जिन्हें फुर्सत ही नहीं मिलती ज़रा सा भी याद करने की..

उनसे कह दो हम उनकी याद में फुर्सत से बैठें हैं।।


घर है या धर्मशाला मुँह उठाकर आते-जाते हो कभी भी...

हम ठहरे पहरेदार तुम्हारी रखवाली के लिये रखे हुए है।।


सुनो मेरे मायके भी बोल दो इस बार भी ना आ पाऊँगी...

कह दो उन्हें जिम्मेदारियों का चोगा ओढ़े बैठें है।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract