फुर्सत
फुर्सत
कहीं तो जा रहे हो पर तुम्हें फ़ुरसत नहीं है बताने की....
एक हम है जो दरवाजे पर आँखें लगाए बैठें है।।
जिन्हें फुर्सत ही नहीं मिलती ज़रा सा भी याद करने की..
उनसे कह दो हम उनकी याद में फुर्सत से बैठें हैं।।
घर है या धर्मशाला मुँह उठाकर आते-जाते हो कभी भी...
हम ठहरे पहरेदार तुम्हारी रखवाली के लिये रखे हुए है।।
सुनो मेरे मायके भी बोल दो इस बार भी ना आ पाऊँगी...
कह दो उन्हें जिम्मेदारियों का चोगा ओढ़े बैठें है।।
