टुकड़ा
टुकड़ा
मैं तुम्हारे गुज़रे कल का टुकड़ा हूँ..
मुझे हाल में रखोगे क्या ?
मेरे साथ तुम हँसे हो,
मेरे गले लग रोए हो
तुमने मुझे अपना कंधा दिया था
मुझसे छीनकर ही सही,
मेरा वक़्त लिया था
कि अब मैं तुमसे पूछती हूँ
उन बीती यादों को
अब भी सहेजकर रखोगे क्या ?
मैं तुम्हारे गुज़रे कल का टुकड़ा हूँ..
तुमसे मुलाकातें हुआ करती थी
सुबहो शाम से रातें हुआ करती थी
यूँ तो पसंद नहीं मुझे वो मौसम
जो पहली बार अच्छी लगी थी
वो मेरी आखिरी सर्दी थी
मेरा दिया हुआ तोहफा
अब भी अपने काँधे ओढ़ोगे क्या ?
मैं तुम्हारे गुज़रे कल का टुकड़ा हूँ..