चाहत की नाव
चाहत की नाव
बह निकली आँखों से आज नीर की झड़ी
मुझे विदा करने साजन की नाव है खड़ी
उस पार सासरे की पाँव में लगेगी बेड़ी
उन् जंजीरों में मैया तेरी मैना जा पड़ी
बंधन कायदे क़ानून सब हसरतों से बड़े
नहीं उम्मीद कभी फिर पंखों से मैं उड़ी
सोने की दिवार पर मैं हीरे सी जड़ी
नहीं होगी हिम्मत दिखाऊं अपने जोहर
पीहर की आज़ादी पर लगी पाबन्दी
सपने सुहाने शादी के थे बचपन से
हकीकत में सब पर मिटटी मढ़ी
टूट गए स्वपन दिवा के चुभते
अब जैसे आँख में कांच
बह निकली आँखों से आज नीर की झड़ी
मुझे विदा करने साजन की नाव है खड़ी।