नारी अधिकार
नारी अधिकार
जाने कितने दुखों को अपने हृदय में छिपाए हुए
सबके आगे संभालती है वो सजल नयन के भार
जाने कितने ही वर्षों से मौन है धधकती ज्वाला
उफ़ान आएगा और जाने कब फूट पड़ेगा ये ज्वार
साँझ होते ही अम्बर में चमकते तारे झाँकने लगे
सब हो गए मौन और अम्बर में छाया अन्धकार
उसके लिए सुबह से शाम नहीं है कहीं भी आराम
क्या उसको नहीं स्वतंत्र होकर जीने का अधिकार
क्यों बांधकर रखा गया है उसको इन सीमाओं में
उसके अपने मन के भावों का नहीं है कोई द्वार
क्यों सभी भावों को कैद करके रखा है किसी ने
इस परिस्थिति को मान लिया जीवन का आधार
अपनी बातों को कभी नहीं दिया मन में परिवेश
चाहती थी सौरभ फूलों का मिला उसे कंटक हार
निज हृदय वेदना का किसको देगी अब वो संदेश
कौन हृदय उसका टटोलेगा कौन करेगा उसे प्यार
कुछ ने लिखा लहू से कुछ के आँसू गीत बन गए
लड़ने को अंधियारे से उसने खटखटाए कई द्वार
कब यह युग बदलेगा और कब नया युग आएगा
कब उसका अपना होगा मन रूपी सुखमय संसार।
