क्यों खुद को तू जलाती है? क्या मेरी आवाज़ सुन नहीं पाती है? क्यों खुद को तू जलाती है? क्या मेरी आवाज़ सुन नहीं पाती है?
बनी है सबकी अपनी अपनी सीमाएं, धारणाएँ बनीं, बनी है सबकी अपनी अपनी सीमाएं, धारणाएँ बनीं,
मैं प्रहार नहीं हूं, मैं पहाड़ नहीं हूँ, मैं स्रोत हूँ कहीं, मैं प्रहार नहीं हूं, मैं पहाड़ नहीं हूँ, मैं स्रोत हूँ कहीं,
देखो ना कैसे…. उस कनेर पर लिपटी मुझे ही चिड़ा रही है देखो ना कैसे…. उस कनेर पर लिपटी मुझे ही चिड़ा रही है
वो चेहरों को देख खुद के खामोशी से उस दर्द को सीने में छिपा लेते हैं, वो चेहरों को देख खुद के खामोशी से उस दर्द को सीने में छिपा लेते हैं,
वीर सैनिक आतंकवादियों से भी रात दिन लोहा लेते, वीर सैनिक आतंकवादियों से भी रात दिन लोहा लेते,