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Anita Sharma

Romance Fantasy

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Anita Sharma

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अंतर्विरोध

अंतर्विरोध

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घर के अहाते में

जन्म ले चुकी

उस अकारथ बेल ने

घेर लिया था

अब वो कोना

जो तुमने

ख़ास मुझे सौंपा था

अपने मन की

फुलवारी सजाने को

ख़ास भी तो था वो कोना

अपनी प्रेम के कुछ पल

ज़िन्दगी भर को संजोये थे


देखो ना कैसे….

उस कनेर पर लिपटी

मुझे ही चिड़ा रही है

मुझे नहीं रास आ रहे

आस पास जमे

वो खर पतवार

जो उसकी तरुणाई को

बल दे रहे थे

कैसे जकड़कर

सर पर चढ़ती जाती

हरी-भरी लचकती लहराती

अपनी सीमाओं को लांघती

शायद दे रही थी

अपने सपनों को विस्तार

हाँ शायद बांटने को तत्पर

हो मेरे ही एहसास


हाँ सच कहती हूँ

बड़ी कुढ़न मुझे

थी होने लगी

मैं अपनी यादों में

थी खोने लगी

जैसे तुम पर मैं अपना

हक़ खोने लगी थी

क्योंकि जानती हूँ

बड़े भोले हो ना तुम

इसके छल को न समझोगे

दिल में पाप नहीं तुम्हारे

उसको भी जगह दे दोगे


बिना गंवाए एक पल

झट से उठ बैठी मैं,

छांट दिया मैंने

सब कुछ पल भर में,

पड़ी थी एक कोने मैं

वो होकर निढाल,

मुई लगने लगी थी

जी का जंजाल,

खैर खुश थी मैं

दिल से बहुत,

वापस पाकर

वही अपना कोना,

बिलकुल वैसा ही जैसा

तुमने मुझे दिया था,

जहाँ मिलकर हमने

सपनों को जिया था....



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