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कुमार अविनाश केसर

Abstract

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कुमार अविनाश केसर

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तेरे खुरदरे हाथ

तेरे खुरदरे हाथ

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किसी का घर

सजाते 

ये

तेरे खुरदरे हाथ!


कैसे,

किसी की किस्मत को

कोमल बना देते हैं -

खड़खड़ करते,

सूखे पत्तों जैसे,

तेरे ये खुरदरे हाथ!


कैसे,

किसी के 

सपनों का भार 

उठा लेते हैं आसमान में,

तेरे ये खुरदरे हाथ!


आँखों में-

आसमानी- सी झपकी 

या कि गहरी नींद!

कैसे

और

कहाँ से

लाते हैं ये तेरे खुरदरे हाथ!


कठोर हाथों से,

कोमल धरती,

कैसे पसीज जाती है!

कैसे हो जाती है सुराख

आसमान में

इन खुरदरे हाथों से!


तेरी 

हथेलियाँ,

क्यों हो जाती हैं

किसी की छत!

तेरे खुरदरे हाथ

कैसे हो जाते हैं

किसी के हाथ!


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