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सोनी गुप्ता

Abstract

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सोनी गुप्ता

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होली की मस्ती

होली की मस्ती

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होली का रंग चढ़ा ऐसा यादों का गुलाल उड़ने लगा

होली की मस्ती में खुशियों का खुमार बिखरने लगा


रंगों की बौछार और पिचकारी से जब बरसता प्यार

प्यार के अल्हड़पन में   होली का हुड़दंग मचने लगा


इस त्योहार प्रेम और भाईचारे के मर्म को समझाकर 

हर गली में चहुँ और रंग रूपहला सबका दिखने लगा


भेद -विभेद को भुलाकर सबके हृदय को है जोड़ती

रंगों और खुशियों संग मन का कौतुहल बढ़ने लगा


तरह-तरह के रंगों संग मस्ती की पतंग देखो उड़ रही

ढोल मंजीरे बज रहे ये मौसम भी देखो बदलने लगा


कुछ यादें कड़वी दूर हुई मीठी-मीठी खुशियाँ संग है

रिश्तों की चहल-पहल से घर का आंगन सजने लगा


झूम उठा धरती का कण-कण होकर रंग में सराबोर

होली में रंग लगा ऐसा मन बिन भांग बहकने लगा


हाथ -पैर सब रंग में डूबे चेहरे पर सबके रंगोली है

रंगों को देख मुख से जोगिरा सारारारा निकलने लगा।


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