दो पहलू
दो पहलू
कहां फरिश्ते हमसे जुदा है
बस उनके सीने में रहता रब है
हमारी फितरत बदलती रहती
ज़ेहन में रहता "क्यों और कब" है
दुआएं जिनकी असर है करती
रुह में उनकी बस पाकीज़गी है
रंगीनियां, पहनावा है एक धोखा
मैली हो चुकी इनमें सादगी है
बिछी हो ओस चाहे भी कितनी
रेगिस्तानों की प्यास बुझती है कहां
सूखे दरिया कितने भी बड़े हो
घरौंदों की कमी खलती है वहाँ
कमी कहाँ कमियां गिनने वालों की
नज़र है उनकी बाज से भी तीखी
फरेब से नाता जिनका है गहरा
मांगते वे हमसे सच की गवाही
मेरी शिकन पर सवाल खड़े है
जज़्बात छुपाने को कह रहे है
ए परखने वालो सुन लो जरा तुम
एहसास मेरे अश्कों में बह रहे है
बिना जिल्द की पड़ी किताबों से
सफहे अक्सर है चुराए जाते
एक दफा जब कलम चलेगी
बोल पड़ेंगे किस्से जो छुपाए जाते
हर सिक्के के होते है दो पहलू
पहचानना नज़र की पारखी है
कब सिक्का किसके हक में गिरे
जिंदगी की अजब यही पहेली है...…..
