नारी हूँ नयी मैं
नारी हूँ नयी मैं
नहीं हूँ वही मैं,
नयी हूँ, नयी मैं !
नारी हूँ नयी मैं !
तन की सुंदर,
मन की सुंदर,
खरी हूँ स्वर्ण सी ।
तपी हूँ सदियों आग में,
निखरी तब हूँ स्वर्ण सी,
स्वर्ण से अलंकृत नहीं,
मैं ख़ुद ही स्वर्ण हूँ ।
राग संग मैं रागिनी,
चाँद संग चाँदनी ।
नर संग मैं नारी हूँ,
नारायण संग नारायणी ।
देह वही,
मन की नयी,
तन की अपने,
मन की अपने,
हूँ मैं स्वामिनी ।
राह मिली है मेरी तुझसे,
होड़ नहीं मेरी तुझसे,
धरा हूँ मैं आकाश की,
धार हूँ शमशीर की,
हूँ स्वयंसिद्धा,
हूँ स्वाभिमानी मैं ।
नहीं हूँ वही मैं,
नयी हूँ नयी मैं !
वही नहीं ये भूल मत,
नारी हूँ नयी मैं !
दुर्गा नहीं,
काली नहीं,
सती-सावित्री,
लक्ष्मी नहीं,
जो भी हूँ,
तेरे सामने,
साक्षात खड़ी हूँ मैं ।
देवी नहीं मैं,
पूज मत,
अबला समझ,
मुझे रूँध मत ।
जो साथ चाहिए मेरा,
जो हाथ चाहिए मेरा,
आँख मिला, दिल में बिठा,
और हक़ की बात कर ।
हाथ बढ़ाती हूँ अपना,
तू भी अपना हाथ बड़ा ।