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Sandeep Gupta

Abstract

5.0  

Sandeep Gupta

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नारी हूँ नयी मैं

नारी हूँ नयी मैं

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नहीं हूँ वही मैं,

नयी हूँ, नयी मैं !

नारी हूँ नयी मैं !


तन की सुंदर,

मन की सुंदर,

खरी हूँ स्वर्ण सी ।

तपी हूँ सदियों आग में,

निखरी तब हूँ स्वर्ण सी,

स्वर्ण से अलंकृत नहीं,

मैं ख़ुद ही स्वर्ण हूँ ।


राग संग मैं रागिनी,

चाँद संग चाँदनी ।

नर संग मैं नारी हूँ,

नारायण संग नारायणी ।

देह वही,

मन की नयी,

तन की अपने,

मन की अपने,

हूँ मैं स्वामिनी ।


राह मिली है मेरी तुझसे,

होड़ नहीं मेरी तुझसे,

धरा हूँ मैं आकाश की,

धार हूँ शमशीर की,

हूँ स्वयंसिद्धा,

हूँ स्वाभिमानी मैं ।


नहीं हूँ वही मैं,

नयी हूँ नयी मैं !

वही नहीं ये भूल मत,

नारी हूँ नयी मैं !


दुर्गा नहीं,

काली नहीं,

सती-सावित्री,

लक्ष्मी नहीं,

जो भी हूँ,

तेरे सामने,

साक्षात खड़ी हूँ मैं ।


देवी नहीं मैं,

पूज मत,

अबला समझ,

मुझे रूँध मत ।

जो साथ चाहिए मेरा,

जो हाथ चाहिए मेरा,

आँख मिला, दिल में बिठा,

और हक़ की बात कर ।

हाथ बढ़ाती हूँ अपना,

तू भी अपना हाथ बड़ा ।


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