Sandeep Gupta

Inspirational

5.0  

Sandeep Gupta

Inspirational

मैं

मैं

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'मैं' से बड़ा है 'तुम',

'मैं' से बड़ा है 'हम',

'मैं' है छोटा, 

पर है हम, तुम, 

सब पर भारी।


'मैं' जो बिगड़ा तो, 

बिगाड़ देता है खेल, 

बना बनाया,

हीरो को बना देता है ज़ीरो,

एक झटके में, 

शिखर से गिरा देता है,

औंधे मुँह, सीधे जमीं पर।


'मैं' है मँजा पहलवान, 

कुश्तीबाज धुरंधर,

'मैं' की पटकनी,

का नहीं है कोई तोड़,

'मैं' का मारा,

गिर कर फिर नहीं उठता दुबारा। 


'मैं', जब हुआ मति पर हावी,

इतिहास है गवाह,

रावण को हरा राम ने,

कंस को कान्हा ने,

दुर्योधन को हरा भीम ने।


'मैं' है बड़ा चालबाज़,

रिश्तों में लगा सेंध,

बाप को बेटे से,

भाई को भाई से,

दोस्त को दोस्त से,

देता है भिड़ा।


'मैं' से ही अस्तित्व है मेरा,

'मैं' से ही है अभिव्यक्ति मेरी,

'मैं' को बाँधना भी है ज़रूरी,

'मैं' रूपी अश्व को साधना भी है ज़रूरी,

'मैं' ना करे तुम्हारी सवारी,

'मैं' की तुम्हें करनी है सवारी।


'मैं' को ना चढ़ाना सिर पर,

'मैं' को ना गिराना पैरों पर,

'मैं' को मैं से ना होने देना हल्का,

'मैं' को मैं से ना होने देना भारी,

'मैं' को जीवन में रखना उतना ही,

दाल में जितना, 

तुम्हें नमक है रखना।


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