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Asha Pandey 'Taslim'

Abstract

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Asha Pandey 'Taslim'

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जीत आई हूँ मैं

जीत आई हूँ मैं

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आज इत्तेफ़ाकन सावन का

आख़री सोमवार था

जैसे रमजा़न का अलविदा जुमा

कहते हैं आखि़री जुमे को

कुछ अलग असर होता है

आज मैने भी अलविदा कहा मन से

इस दिखावटी ज़िन्दगी को

इस ऐशोआराम को

उस झूठे तमगे को

जिसे गले मे लटकाये

मैं घूम रही थी अभी तक

गजब का असर दिखा

इस तमगे़ को उतारते ही

मेरी गर्दन जो बोझ से झुकी रहती थी

वो सम्मानित होकर तन गई स्वभिमान से

बोझ का दर्द भी ख़त्म

अब दिल गहरी सांस नहीं ले रहा

लेकिन सुकून से है

आज मन से मैं आज़ाद हो गई हूँ

अब कोई तन को क्या ही बांधे

आज कुछ छोड़ा है

आज ही कुछ पाया है मैंने

इस जोड़ घटाओ में

सब हार कर खुदको जीत आई हूँ मैं

ज़िन्दगी को अपनी शर्तो पर

जी आई हूँ मैं।


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