कितना लाजमी है
कितना लाजमी है
श्याम, तेरा रूठना कितना लाजमी है।
मेरे लिए तूने क्या क्या न किया,
पर जला नहीं दिलमे ये दिया,
क्या करूं मेरा भी कसूर नहीं,
सदियों से आत्मा पर धूल जमी है।
श्याम, तेरा रूठना कितना लाजमी है।
सोचती हूँ में भी तेरी गली आऊं ,
मीरा की तरह नाचूं और गाऊं ,
बीचमें आ जाता है कोई न कोई,
सोचकर यह मेरी आँखों में नमी है,
श्याम, तेरा रूठना कितना लाजमी है।
चाहती हूँ मेरे घर झूले पे झूला लूं ,
न जाने इस तरह कब तुम्हें पा लूं ,
मिलने का मौक़ा हाथ से छूट जाता है,
हर ख़्याल बस रह जाता कलमी है,
श्याम, तेरा रूठना कितना लाजमी है।
फिर भी तूने मेरा जीवन उजाला,
मंज़िल को रास्ते में ही जो ढाला,
सुधबुध मोहे कहा, समझ पाऊं ,
साक्षी ये सितारों की टमटमी है।
श्याम, तेरा रूठना कितना लाजमी है।
राह में तू आया एक कदम आगे,
पर ये मेरा मन तो पीछे भागे,
अब तो लगता है किअसंभव है ,
मेरे प्रयासों मे ही कोई कभी है।
श्याम, तेरा रूठना इतना लाजमी है।
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