राह रूठी रहीं
राह रूठी रहीं
राह रूठी रहीं, हम से रूठी रहीं।
मंजिल हमें बुलाती रहीं बारबार,
पर पाँव चलने को नहीं थे तैयार,
बात बनते बनते ही बिगड़ती रही,
राह रूठी रहीं, हम से रूठी रहीं।
,
किसीकी मौजदगी पास न पाई,
हमारे साथ ही चलती रही तन्हाई,
अनसुलझी ही जिंदगी की गुत्थी रही,
राह रूठी रहीं, हम से रूठी रहीं।
परेशां हर दोराहे पे कश्मकश से ,
राह, राही, मंजिल मिले न आपस मे,
वक्त की खिसकती रेत, बंद मुट्ठी रही,
राह रूठी रहीं, हम से रूठी रहीं।
शानो-शौकत से निकले थे घर से,
सोचा था जुड़ जाएंगे अंबर से,
जिंदगी घोंसला बनाने में जुटी रही,
राह रूठी रहीं, हम से रूठी रहीं।
