सफर अनजाना
सफर अनजाना
क्षितिज तक ही
जाते हैं ये रास्ते,
पता था मुझे
चरणों से वहाँ
तक ही जा पाती।
हौसले की पंख लगा के,
निकल पड़ी मैं,
एक अनजानी सफर पे
उस आसमा को छूने,
जिसे मैं बचपन से
देखती आई हूँ,
अपनी व्हीलचेर
पर बैठ के
रुकना कभी
सिखाया ही नहीं,
माँ और बाबूजी ने।
