रिश्तों की गठरी
रिश्तों की गठरी
एक ही तो था,
पहले परमात्मा से ...
फिर माँ से जुडी,
पापा, भैया, बहने,
चाचा, चाची...
अनगिनत रिश्ते...
कही रिश्ते माँ से मिले,
कुछ पापा से,
कुछ समाज से,
कुछ मैंने बनाये।
रिश्तों की गठरी,
भारी होती गई ।
मुश्किल हो जाता है,
उसे संभालना,
साथ लेकर घूमना।
कही छोड़ भी
नहीं सकती,
वक्त ही छुड़ाएगा,
फिर वही एक ही बचेगा,
जो पहले था।
