निखिल कुमार अंजान

Abstract

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निखिल कुमार अंजान

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माँ शब्द नही संसार है.......

माँ शब्द नही संसार है.......

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यह सिर्फ शब्द नही संसार है

जीवन का मजबूत आधार है

रोम रोम मे उसके होती ममता

वह निस्वार्थ वाला प्यार है

अपनी खुशियाँ न्यौछावर कर

बालक की मुस्कान मे ही

अपना संसार बसाती है

इक माँ शब्द सुनने खातिर

वह इतने कष्ट उठाती है

मातृत्व सुख की चाह मे

नौ माह का तप कर जाती है

अपना स्तनपान करा कर

इक नारी से माँ बन जाती है

रात रात भर जागकर लोरी गा

गोद मे अपनी प्रेम से सुलाती है

लालन पालन मे व्यस्त होकर

अपनी सुध भी न रह जाती है

पहला शब्द जीव्हा से निकले माँ

वह सुन यह धन्य हो जाती है

भिन्न भिन्न अभिनय कर वह

रुठे अपने बालक को मनाती है

मुख देख अपनी संतान का

हर गम से मुक्त हो जाती है

ममता करुणा एंव दुलार का

सागर सदैव वह लुटाती है

माँ ईश्वर तुल्य कहलाती है

कुदरत का यह अनुपम उपहार है

माँ सिर्फ शब्द नही पूरा संसार है

हर जीव के जीवन का आधार है

निराकार है जो ईश्वर...माँ उसका

रुप साकार है......




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