डाँट
डाँट
पन्द्रह जून की सुबह हुआ घमासान
जब बेटी को डाँट मैने किया उसका अपमान
घर में रहकर बच्चे भी ज़िद्दी हो गए हैं
हर बात को बिना सुने कहीं और ही खो गए हैं।
जब से ऑनलाइन कक्षाओं का दौर चला है
मोबाइल ने कोमल हृदयों पर आघात किया है
हल्की सी फटकार से ही बच्चे रूठ जाते हैं
खाना - पीना छोड़ अभिभावकों को धमकाते हैं।
दोपहर सारी बेटी को मनाने में चली गई
रात में भी वो ना खाने की ज़िद पर अड़ी रही
अपने बच्चों की ज़िद के आगे हम हार ज़ाते हैं
उन्हें क्यूँ डाँटा ये सोच बाद में पछताते है।