सुरमई शाम
सुरमई शाम
उन्मुक्त गगन में विचरता सूरज
पहुंचा संध्या बेला तक..
ले अंगड़ाई,दीपशिखा सा,
धंस गया सरिता के अंदर..
देख सुनहरी आभा उसकी
नभ तल में फैली है..
सुरमई सी शाम देखो
कोमल नारी सी महकी है..
सौंप शशि को बागडोर अब,
सूरज घर को जाएगा..
मां के आंचल में छिपकर,
अपनी थकन मिटाएगा...