तस्वीर युद्ध की
तस्वीर युद्ध की
विकास से विनाश तक जाती
युद्ध की ये भयावह तस्वीर..
कुछ तो समझाती है...!!
आदिम युग से नवयुग तक
तिनका तिनका संजोया
जिस सभ्यता को हमने
अहम के एक झोंके ने
पल भर में बिखेर दिया सब...!!
ये पत्र विहीन शज़र
ये चहुं दिस उठता धुंआ
विनाश का तांडव खेलता
ये मानव....
कल तलक थी
जो मुस्कुराती बस्ती
मातमी सन्नाटे से
आज सहमी है...
दफ़न है यहां
कितने ख्वाब..
कितनी उम्मीदें..
कितनी मासूम खिलखिलाहटें...!!
ये सच है कि
श्मशान की इस आग पर
फिर कोंपल फूटेगी
फिर उम्मीदों का शज़र लहराएगा
फिर एक बस्ती मुस्कुराएगी..
पर कब तलक
बकरे की मां खैर मनाएगी...!!
ये जो प्रतिस्पर्धा,वैमनस्यता का बीज
बोया है ना तूने मानव
विषबेल की तरह हर बार
विनष्ट कर देगा
तेरी हरी भरी बगिया को...!!
वक्त है...
अब भी संभल जा
जीवमात्र से प्रेम को
अपना हथियार बना
और काट डाल
इस विष बेल को
ताकि आरोपित कर सके फिर से
प्रेम पारिजात को...
