झरना
झरना
शीतल पवन और मंद सुगंध
कल कल झरने का मधुर हास
कुछ भी तो ना भाता था
हर पल रुलाता था
प्रियतम से मिलने को
उसका जी घबराता था
हर पल ख्यालों में था
उसकी ही बांहों में था
लेकिन हकीकत में
ना उसका पता था
झरना जो बहता था
उससे कुछ कहता था
आएंगे मिलने को जब
प्रियतम वो तेरे तो
झील जो ठहरी है
आंखों में तेरी
बह जाने देना
झरने सी उसको
आंखों में भरकर
शरारत फिर सारी
इक बार फिर से
तू खिलखिलाना
ओ प्रिया
जन्मो की प्यास
तू अपनी बुझाना...