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Kanak Agarwal

Romance Tragedy Fantasy

4  

Kanak Agarwal

Romance Tragedy Fantasy

प्रेम

प्रेम

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जितनी सहजता से

तुमने आजादी मांगी थी,


उतना सहज नहीं था मेरे लिए

खुद को आजाद कर लेना...


ये ठीक वैसे ही था

जैसे मांग ले कोई

चांद से चांदनी..

सूरज से ज्योति..

फूल से खुशबू..

और

झरने से कल कल..

स्तब्ध थी मैं !!

पर..

नासमझ नहीं..

जानती थी ये कि

बांधने से प्रेम बंधता नहीं..

कर दिया आजाद तुम्हें !!


और सहेज लिया 

प्रेम तुम्हारा,

अपने आंचल में..!!

अब ये है 

सुबह का सजदा मेरा

और आरती सांझ की.....



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