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सोनी गुप्ता

Abstract

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सोनी गुप्ता

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हमारी महफ़िल

हमारी महफ़िल

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आज वो आये हमारी महफ़िल में अब तो दिल में उतर जाने का जी है

बहुत से सवाल मन में घूमते है सोचती हूँ उनका जिक्र हम करें कैसे 

ये हवा का झोंका यहाँ आया कहाँ से मन में घन –सा छाया कहाँ से

झुकी हुई पलकें देखती है उन्हें अनथक ये रूप अप्रितम पाया कहाँ से

तमन्ना है हमारी झूलें बाँहों में तुम्हारी हसरतें तुम्हें अपनी बताएं कैसे II 


यकीं मानो तुम्हारी यादों में तुम्हारे साथ रहने की हमें आदत सी हो गई

मैं रेल हूँ तो तुम रेल की पटरी जो साथ रहकर गंतव्य तक पहुँचती है

जब भी ख्याल आता तुम्हारा वो ख्याल मुझे तुम्हारी यादों में ले जाती है

कोई बात जब भी तुम्हारी सामने आती है ख़ुशी की लहर बन इतराती है

जाने क्यों हर पल तुम्हारी कमी हमें रह –रहकर तड़पाती जाती है II  


भूले से भी जब कोई गलत कदम उठता है तुम थाम लेते हो हाथ मेरा

अब मुरझाने का खौफ नहीं दिल में जब तुम हर –पल साथ मेरे चलते हो

तुम्हें देखकर शीतल शोख पवन जब चलती दिल में मेरे हलचल होती है

सनम हाँ खामोश हूँ मैं पर निगाहें मेरी तुमसे बहुत कुछ कह जाती है

इन ख़ामोशी में भी ख़्वाबों को बुनती और तुझको ही सुनती रहती हूँ I 


बयां करने को बहुत सी बातें हैं मन में जिन्हें बताना चाहती हूँ मैं तुमसे

जो बातें छिपी हैं तुम्हारे दिल में बता दो उन्हें अब न छुपाना हमसे

वो चाहे दूर हो या पास हो हर पल प्यार का एहसास हमें होता है

आलम है ये महफ़िल की आमद का इश्क में उनके बिखर जाने का जी है

आज वो आये हमारी महफ़िल में अब तो दिल में उतर जाने का जी हैI


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