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Mehdi Imam

Abstract

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Mehdi Imam

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चलो इस क़ैद में, एक ख़्वाब सजाया जाए ।

चलो इस क़ैद में, एक ख़्वाब सजाया जाए ।

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चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।

चलो रोते हुए,

चेहरों को हंसाया जाए।


लम्हे फ़ुरसत के कहां,

मिलते हैं इस दुनिया में।

आज इन लम्हों को,

नायाब बनाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


है जो मुमकिन,तो चलो, 

आज का हर पल जी लें।

फ़िक्र में कल की,

क्यूं आज बिताया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


है जो तक़दीर में,

वो हो के रहेगा, लेकिन।

बेवजह ख़ुद को,

क्यूं आज सताया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


नफ़रतों का कोई,

अब नामो-निशां न हो जहां।

चलो, एक ऐसा,

गुलिस्तान बनाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


बांटती है जो,

एक इंसान को इंसानों से।

दरो- दीवार हो,

ऐसी तो गिराया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


कोई मुफ़लिस न हो,

लाचार ना भूखा हो कोई।

चलो ऐसा कोई,

संसार बनाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


अब न मस्जिद,

ना मंदिर,ना के गिरजा ही नया।

है ज़रूरत,

के अस्पताल बनाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


जल रहे हैं,

कई सीनों में,नफ़रत के चिराग़।

सबके सीनों से,

वो अंगार बुझाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


हर तरफ़ जान पे,

जो खेल रहे सबके लिए।

उनके एहसान को,

हरग़िज़ न भुलाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


हो के महफ़ूज़,

जो बैठे हैं,घरों के अंदर।

ये सब हैं कितने,

समझदार बताया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


ज़रा सी देर में ,

मिलता है क्या,तफ़रीह का मज़ा।

ले के अब जान,

हथेली पे ना जाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


मेरी मानों तो,

ज़रा आज चलो यूं करलें।

किसी रोते हुए,

चेहरे को हंसाया जाए।


चलो इस क़ैद में,

एक ख़्वाब सजाया जाए।


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