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Mehdi Imam

Romance

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Mehdi Imam

Romance

हमसे यूं दुश्मनी, वो निभाते रहे ‌‌...

हमसे यूं दुश्मनी, वो निभाते रहे ‌‌...

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हमसे यूं दुश्मनी, 

वो निभाते रहे।

दूर बैठे रहे, 

मुस्कुराते रहे।


हमने आवाज़ दी,

बारहा, वो मगर।

गीत सुनते रहे,

गुनगुनाते रहे।


थीं अगर मुश्किलें,

हमसे कहते तो तुम।

बिन कहे ही हमें,

आज़माते रहे।


प्यार का जब शजर,

खिल ही पाया नहीं।

इस परिंदे को क्यूं,

घर बुलाते रहे।


रात भर करवटें,

हम बदलते रहे।

रात भर तुम हमें,

याद आते रहे।


यूं तो तुमने कहा,

भूल जाऊं तुम्हें।

फिर ये क़िस्से मेरे,

क्यूं सुनाते रहे।


आख़री सांस तक,

हम वफ़ादार थे।

तुम हमें बेवफ़ा,

क्यूं बुलाते रहे।


शेर कहना तुम्हें,

'मेहदी' आता नहीं।

तुम फ़क़त क़ाफ़िया

ही मिलाते रहे।।



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