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Mehdi Imam

Abstract

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Mehdi Imam

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हम कब सुधरेंगे ?

हम कब सुधरेंगे ?

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बेबस कितनी ज़िंदगियां,

लापरवाही की भेंट चढ़ीं।

न जाने कितनी ज़िंदगियां,

नौकरशाही की भेंट चढ़ीं।


कुछ देर सही, सोंचों तो तुम,

इक साल फ़क़त ही गुज़रा है।

न जाने कितनी ज़िंदगियां,

इन वाह-वाही की भेंट चढ़ीं।


शर्म उन्हें, कब आएगी ?

जब धरती मां फट जाएगी ?

कौन उन्हें समझाएगा ?

अब नय्या पार लगाएगा ?


लाशों के अंबार दिखे,

इक नहीं सौ बार दिखे।

फिर भी हैं वो मस्त यहां,

जनता बस लाचार दिखे।


तुम धर्म के ठेकेदार बने,

भाई पे चली तलवार बने।

जो तेरे दम पे जिंदा हैं,

तुम उनके चाटूकार बने।


वो तुम को मुर्ख बनाते हैं, 

नित नये ढोंग रच जाते हैं।

जो बिच्छू से भी घातक हैं,

ख़ुद को भिक्छू बतलाते हैं।


तुम लुटते हो पर ख़बर नहीं,

हालात पे अपनी नज़र नहीं।

तुम सब खो कर ही मानोगे,

थोड़े से तुमको सबर नहीं।


न इसके हैं, न उसके हैं,

बस वो ही जानें, जिसके हैं।

बस वोट मिला, रिश्ता टूटा,

बस खाया पीया खिसके हैं।


तुम हाथ मसल रह जाओगे,

जब हाथ में कुछ ना पाओगे।

वो देख तुझे मुसकाएंगे,

मन मार के तुम रह जाओगे।


देखो, इक दिन वो आएगा, 

जीना मुश्किल हो जाएगा।

हंस चुगेगा दाना पानी, 

कौआ मोती खाएगा।

       

इससे पहले दुनिया उजड़े, 

हम चलो प्रेम का पाठ पढ़ें।

नफ़रत की हार सुनिश्चित हो,

एक ऐसा हम संसार गढ़ें।।


ना खाने को कोई तरसे, 

न दवा बिना कोई तड़पें।

बिना भय अपनी बहनें,

रातों को घर से अब निकलें।


कोई न भेद हो मज़हब का, 

कोई न भय हो मंसब का।

सब एक ही थाली में खाएं,

कोई न रूप हो अब रब का।


कोई न भक्त हो साहब का, 

राहुल का न कोई अरनब का।

सब एकजुटती की बात करें,

हां मोल न हो अब करतब का।


जो हम में फूट दिलाए वो, 

उलटी मुहं की अब खाए वो।

हो हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,

बस दुश्मन कहलाए वो।


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