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PIYUSH BABOSA BAID

Abstract

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PIYUSH BABOSA BAID

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माँ

माँ

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देख कर जिस्से चेरे पे आती है हंसी वो ना दिखे तो छा जाति है मायूसी 

वो ही जीने का सार और संसार है 

उससे ही हम पे ऐटबर है 

वो ही करती हमसे सचा प्यार है। 


मेरे अल्फ़ाज़ तुझसे है 

मेरे जज़्बात तुझसे है 

इस जीवन की साँसे तुझसे है 

मेरे जीने की वझा तुझसे है 

पाकर दर्द दिया जो जनम तूने माँ 

मेरा वजूद तुझसे है 

मेरे पूरी दुनिया तुझसे है। 


कभी स्वर्ग को मेने अपने सामने ना देखा 

कभी भगवान को हस्ते रोते ना देखा 

जो देखा माँ तुझे मेने अपने सामने 

क्या स्वर्ग क्या भगवान मेने सारा जन्नत अपने सामने है देखा। 


थक हार के जब पूरे दिन से 

घर आता हूँ मैं

जब एक आवाज़ माँ देती है 

हाथ मू धोके आजा बेटा 

खाना परोसती हूँ मैं। 


खाना खाने जब भी बेठता हूँ 

पास मैं तुम बेठती हो माँ 

अपने प्यार और मुस्कुराते हुए 

चेरे से खाने का स्वाद बढ़ती हो माँ। 


मेरे दुःख पे तू रोटी है माँ 

मेरे सुख पे तू हस्ती है माँ 

जब भी आता है कोई मुसीबत मुझ पे 

बनके धाल तू उससे रोकती है माँ। 


एक रात में हॉस्पिटल में 

मोत से लड़ रहा था 

मेने पूछा डॉक्टर से 

में जी तो जाऊँगा ना 

तब डॉक्टर ने बोला 

तू जीएगा कैसे नही भार खड़ी तेरे माँ 

यमराज से लड़ रही है। 


माँ की गोध में सोने को जी चाहता है 

हाथ से तेरे खाने को जी चाहता है 

तकलीफ़ में मेरे मुझसे 

जाड़ा तूने आंसू भाही है माँ 

खिला पिला के मुझे तू खुद भूखे पेट सोए है। 


आँखे खोलूँ तो चेहरा मेरी माँ का हो 

आँखे बंध हो तो गोध मेरी माँ का हो 

मी मार भी जाऊँतो कोई ग़म नही 

बस आख़री लिबाझ मिले तो डूपॉटा मेरे माँ का हो। 


घुटनो पे रेंगने से लेकर बैसाखी 

पकड़ने तक तूने साथ निभाया है 

सुखी राहु हमेशा दुआ में हाथ उठाया है 

दर्द भरे गर्मी में अपने आँचल के ठंडक में सुलाया है 

ममता भरे प्यार को हमेशा मुझ पर बरसाया है। 


कैसा ये तेरा स्नेह है माँ 

बचपन से ले कर बुढ़ापे तक एक जैसा रहा है 

आज मेरे बुढ़ापे के इस सच में भी 

खुद निवाला खिलाती है माँ 

मुझे सुला के ही सोने जाति है माँ 

और बेटा बेटा बोलके गले लगती है माँ 

और बेटा बेटा बोलके गले लगती है माँ। 


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