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Anjneet Nijjar

Abstract

4  

Anjneet Nijjar

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कुछ कुरते

कुछ कुरते

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टंगे रहते हैं कुछ कुरते अलमारी में यूँ के त्यूँ

और नए कुरते से अलमारी भरती जाती है

अक्सर इन पुराने कुरतों को निकाल कर,

बाहर रखती हूँ, देखती हूँ,फिर रख देती हूँ,

यह कुरते भी उन पुरानी यादों और लम्हों के जैसे लगते हैं मुझे,

जिन्हें न निकाल सकते हैं न पहन सकते हैं,

कुछ लम्हें जीवन में ख़ास होते हैं,

रखते हैं सहेज़ कर हम उन्हें,

जब तब याद करके ख़ुश होने के लिए,

यादें जो जितनी पुरानी होती जाती हैं,

अनमोल होती जाती हैं

ठीक वैसे ही यह कुरते पुराने होकर

भी अनमोल होते जा रहें हैं,

सिमटती हैं इनके साथ इनकी यादें भी,

दीपावली पर लिए नए कुरते

किसी अपने की खूबसूरत भेंट यह कुरते,

माँ की प्यार भरी भेंट, तो बहन के तोहफ़े,

निकालती हूँ, देखती हूँ याद करती हूँ,

उन लम्हों को जो इनसे जुड़े हैं,

रख देती हूँ सहेज़ कर फिर अलमारी में,

जैसे यह तुच्छ वस्तु न होकर मेरे यादगार लम्हें हों,

जिन्हें देना चाहती हूँ मैं ख़ुशियों की विरासत के तौर पर,

जिसप्रकार यह मेरे लिए ख़ास और ख़ुशनुमा पल लाए,

वैसे ही पल उसके जीवन में भी आए,

जो मेरी इस विरासत को संभाले,

चाहे वो कोई भी हो…….


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