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Anjneet Nijjar

Abstract

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Anjneet Nijjar

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रिश्ते

रिश्ते

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गिरे गर टूटकर शाख से पत्ते,

तो मिट्‌टी में मिल ही जाते हैं,

गुज़रे जो दिन वो लौटकर,

वापिस कभी नही आते हैं,

रिश्तों को दोनो हाथों से सम्भाले रखना,

आइना गर गिरा,

तो, टुकड़े बिखर ही जाते हैं,

न कोई शहर अजनबी है न कोई शख्स,

प्यार से गले मिलें तो,

दुश्मन भी दोस्त हो ही जाते हैं,

बुलबुले पानी के,

खिलौने हो नही सकते,

हाथ से छूते ही ये तो टूट जाते हैं,

उम्मीदों के चिराग़ रौशन रहने दो सदा,

सुनहरे दिन के बाद ,

रात के अँधेरे तो आते ही हैं,

दुनिया बिल्कुल नही है छोटी,

फिर भी बिछुड़े हुए लोग,

कहाँ मिल पाते हैं?

कुछ बाँटों, कुछ कह दो किसी से,

दुख इतने दिल में,

कहाँ समा पाते हैं,

गर टिक न पाए रोशनी,

तो अँधेरे भी कहाँ रह पाते हैं।


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