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vinod mohabe

Abstract

4.8  

vinod mohabe

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ए खुदा तू इतना बता

ए खुदा तू इतना बता

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ए खुदा तू बस इतना बता

क्या हुई है इन्सान से खता !

हर मन्जर पे करोना से खौप में चेहरे 

कुछ गरीब,अमीर,बुढे, युवा सब अनजाने से मेरे !!


करोना करोना कहलाता ये सावन 

रुठ गया है शहर का जीवन !

किसी कि दो रोटी कि थाली 

किसी का बटवा है खाली !

कोई भाग रहा अनजाने सडकों में 

तो कोई भाग रहा गावो में !

छुटा है रोजगार किसी का

तो छुटा है मां का आंचल किसी का !

ए खुदा तू बस इतना बता 

क्या हुई है इन्सान से खता !!


छोड चला मजदूर शहर को 

क्या देखा उन्ह्के पैरो के छालों को ?

मिलों मिलों कि दुरी है करते

फिर सुबह उठकर है चलते !

करोना का भय दिखलाता है 

या दो रोटी को तरसाता है !

अब तो ए खुदा तू बस इतना बता

क्या हुई है इन्सान से खता !!


हो रही है श्मशानों में 

ढीग लाशों कि हजारों में !

अब बतला दे तू , वो सत्ताधारी कहा गये

जो हिंद के लिये करते थे वादे रखवाली के ?

ना है तू मन्दिर, मस्जिद में ना गुरुद्वार में 

अब तो बतला दे तू कहा है तू इस धरती पे !!


हो सके तो बस इतना कर दे

इनकों अपनी दुआ में रख दे !

करोना का कहर ये सारा खत्म कर दे

इन्ह बच्चों का सहारा बन रखवाली कर दे !

सृष्टी का चक्र घुमा दे

फिर से हरियाली खिला दे !

खुशहाली भरे वो दिन, सडकों वाली भीड 

हो सके तो फिर से लौटा दे !!


ए खुदा तू बस इतना बता

क्या हुई है इन्सान से खता ! 

हर मन्जर पे करोना से खौप में चेहरे

कुछ गरीब,अमीर,बुढे, युवा सब अनजाने से मेरे !!


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