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vinod mohabe

Abstract Others

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vinod mohabe

Abstract Others

लोग

लोग

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लोग

चेहरे पर मुखौटे नए, लगाए फिरते हैं लोग यहां

ख़ुद को भी पहचानने, आईना देखते हैं लोग यहां


एक दूसरे के झोपड़े, जलाते हैं लोग यहां

इन्सान की कब्र यहां, खोदते हैं इन्सान ही यहां


अपने ही अपनों को, गिराते हैं लोग यहां

अंत समय अपनों को ही, उठाते हैं लोग यहां


गलती कर, मुखर जाते हैं लोग यहां

इल्जाम किसी दूसरे पर, लगा जाते हैं लोग यहां


अपनों से ही खफा हो जाते हैं लोग यहां

ख़ुद ही ख़ुद से बेवफाई कर जाते हैं लोग यहां


बुरे वक्त जो साथ, छोड़ जाते हैं लोग यहां

वहीं घटिया जीने की, सीख देते हैं लोग यहां


एक- दूसरे से घृणा, करते हैं लोग यहां

एक -दूसरे के ही, काम आते हैं लोग यहां।



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