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vinod mohabe

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जिंदगी अधूरी.... अंत समय शमशान

जिंदगी अधूरी.... अंत समय शमशान

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बचपन में नही जुड़ा था जिंदगानी का तार

जवानी ने लाया जिंदगी का मार

किताबे पढ़ने मे हुई मेरी हार

फिर हुई मेरी जिंदगानी से हार

चलते रहने की आई फिर से आवाज

दिखी दूर से जिंदगी लाजवाब 

फिर चलने का मन किया

कितना हुआ मैं बेहाल

कर लूं मैं थोड़ा आराम

बैठ के किया मै बिचार,,,


हाथों की लकीरें अभी कोरी हैं

रंग भरने की अब भी तैयारी हैं

भरते भरते रुकने का मन किया

थक गया, कुछ पल रुकते ही 

फिर चलने का मन किया

कितना हुआ मैं बेहाल

कर लूं मैं थोड़ा आराम 

बैठ के किया मै बिचार


थोड़ा कर आराम फिर से निकल पड़ा

फिर समझ आया अभिमान में था खड़ा 

थी दिल में लकीरे भरने की चाह

मंजिल दिखे नही लंबी होती राह

कितना हुआ मैं बेहाल

बैठ के किया मै बिचार,,,,


अंत में आया शमशान

कौन सी कहानी, कौन सा बताऊ किरदार

समाज में नहीं हैं सत्य को मान

ना किया अपनो ने मेरा सम्मान

हर ज़हर, संघर्ष का पिया हूं मैंने जाम

जिंदगानी की मतलब बतलाने का मैने किया काम 

जिंदा रहकर जिसने अपना किरदार निभाया नहीं

उसको दिया हूं मैंने अमृत का जाम

अब ककैसे बदलू मैं समाज का बिचार

अब आया है शमशान,,,,,


हैं हर किसी के तकदीर का लिखा फैसला

सबका जीवन रहेगा अनसुलझा मसला

बात जो दिल में थीं सबको सुना रहा हूं

शब्द जो गमजदा थे वो कविता में सुनाया हूं

हाथों की लकीरें कोरी हैं

रंग भरने की देखो ओढ़ लगीं हैं

बता बता के थक गया हूं

कितना हुआ मैं बेहाल

बैठ के करू मैं विचार

अब आ गया शमशान

अब आ गया शमशान।



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