आखिर क्यों नारी ?
आखिर क्यों नारी ?
आखिर क्यों नारी ?
बेइज्जती के डर से चूप रहती हो,
क्यों चुप -चाप दर्द सहती हो।
क्यों नहीं उठाती इंसाफ़ के लिए आवाज,
दिन रात बेबसी के आसूं क्यों बहाती हो।
नारी टूट रहा है धीरे धीरे तेरा हौसला,
अब बन जा तू सच्ची ढार।
देख आ गया रावण तेरे दर पे,
बन जा अब दुर्गा सी अंगार।
तू है किस्मत की मारी,
पर नहीं तू किसी पर निर्भर नारी।
हो रहे है तुझ पर हजारों अत्याचार,
उठा अब तू हाथ में हथियार।
ना कर परवाह तू इस दुनियां का,
इस ज़िंदगी के लिए।
हौसला आजमा इन्ह नन्हें बच्चों के
दो रोटी कमाने के लिए।
आखिर क्यों नारी?
अपनी कोमलता को कमजोरी मानी,
ममता,प्यार , त्याग को मजबूरी मानी।
वीरता झांसी रानी की याद ना आई,
जिंदगी से क्या तुने हार हैं मानी।
चल उठ अब नारी,
तू है एक भारतीय नारी।
धीरे धीरे बदल अपनी किस्मत की खाई,
और बना दे जिंदगी की राही।
